नये कृषि कानून में क्या गलत है? क्या इसका विरोध केवल राजनीतिक है?

नये कृषि कानून में क्या गलत है? क्या इसका विरोध केवल राजनीतिक है?

सरकार कह रही है कि नये कृषि कानून से वे बेड़ियाँ टूटेंगीं जिसने खेती को जकड़ रखा है, बड़े पैमाने पर पूंजी और तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। 
इस कानून से कृषि को corporate रूप देने का रास्ता साफ होता है। आप कहेंगे कि इसमें गलत क्या है? 

आखिर किसान क्यों विरोध कर रहा है? क्योंकि उसके अनुभव दुखद रहे हैं। 

गुजरात में Pepsico ने आलू उत्पादक किसानों के साथ अनुबंध किया। इसके अनुसार आलू उत्पादक किसानों की फसल Pepsico एक तय कीमत पर एक तय समय पर खरीदने वाली थी। चार उत्पादकों के आलू को Pepsico ने यह कह कर नहीं खरीदा कि quality अच्छी नहीं है। अब उन किसानों ने अपनी फसल बाहर बाजार में बेच दी। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन Pepsico ने इसे अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन बता कर उन किसानों पर एक-एक करोड़ के हर्जाने का मुकदमा ठोक दिया। गनीमत थी कि उस समय गुजरात विधानसभा के चुनाव निकट थे और सरकारी हस्तक्षेप के बाद मुकदमा वापस ले लिया गया।


गन्ना किसानों और मिल मालिकों के बीच भी अनुबंध ही होता है। इसके अनुसार मिल मालिक एक तय समय और तय कीमत पर गन्ना खरीदते हैं। नियम के मुताबिक किसान को 14 दिन के अंदर गन्ने की कीमत मिलनी चाहिए और ऐसा नहीं होने पर 15% ब्याज किसान को मिलना चाहिए। अब इसका कितना पालन होता है ये सब जानते हैं। गन्ना किसानों का काफी पैसा लंबे समय तक बकाया रहता है जिसपर कोई ब्याज नहीं दिया जाता है।


नये कृषि कानून से किसानों से किसी भी विवाद की स्थिति में न्यायालय जाने का रास्ता छीना जा रहा है ( हालांकि सरकार इसे वैकल्पिक बनाने कि बात कही है )। किसान और कंपनी के बीच किसी भी विवाद का arbitration अब SDM करेगा। अब कहाँ का SDM arbitration करेगा, जहाँ फसल उपजायी गयी है या जहाँ बेची गई है। आज के समय में फसल को उत्पादन के जगह से काफी दूर भी बेचा जा सकता है। तो क्या किसान को अपने घर से दूर जाना होगा विवाद निपटारे के लिए? इस बारे में कानून कुछ भी स्पष्ट नहीं करता है। अगर SDM जरा भी corrupt हुआ तो उसे कौन प्रभावित कर सकेगा ये सब जानते हैं। ऐसा नहीं है arbitration नहीं होता है लेकिन arbitration बराबर वालों में होता है। किसान और कंपनी में मामला एकतरफा हो जाता है।


नये कानून MSP और APMC को खत्म करने का रास्ता साफ कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि MSP और. APMC को लेकर सरकार लिख कर दे (सरकार अभी तक MSP पर लिखित आश्वासन देने की बात नहीं की है, सरकार सिर्फ एपीएमसी पर बात कर रही है)। लेकिन सरकार जुबानी वायदे कर रही है और कुछ भी लिखित में देने को तैयार नहीं है। बिहार में 2006 में APMC को खत्म करने के बाद के अनुभव काफी निराशाजनक रहे हैं।


अमेरिका में corporate खेती होती है लेकिन वहाँ किसानों को कई प्रकार के पैकेज और सब्सिडी मिलती है। हमारे यहाँ बीज-खाद-कीटनाशक की सब्सिडी industry को मिलती है जिसका लाभ किसानों तक काफी कम पहुंचता है। यहाँ तो फसल बीमा भी corporate फायदे का सौदा बन गया है।


अब किसानों की समस्याओं और आशंकाओं को सुनने और निपटाने के बजाय उनको खालिस्तानी और देशद्रोही कहने से समस्या का समाधान नहीं होने वाला है।

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